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कविता

मृत्यु और प्रेम

सर्वेंद्र विक्रम


तुमने किसे प्रेम किया ?
चयन मेरा नहीं था
तुमने कहाँ पाया चूमने का यह ढंग?
यह मुझे भर देता है

तुमने देखे हैं सात आसमान ?
मैं तो ताक भी नहीं सकी उन आँखों में
तुमने प्याला पिया ?
मैं भूली हुई थी मैं कौन हूँ

इस सबने तुम्हें क्या दिया? क्या मिला इस सबसे ?

मेरे पास था भी क्या खोने के लिए ? खोने का डर ?

यह कहीं दूर था फुसफुसाहट की तरह अस्पष्ट धुँधला
इसमें निरंतरता नहीं थी
भविष्य में ले जाने की सोचने पर इसे घेर लिया मृत्यु ने
जैसे स्थिर होते ही मृत्यु ने ढक लिया प्रेम को

छोड़ना क्या
जब कुछ नहीं है अपना
फिर भी छोड़ती हूँ
स्मृति जिन्हें उलट पुलट कर देख रही है


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